नई नवेली राष्ट्रीय पार्टी का नैतिक पतन : लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं

0

अन्ना आंदोलन के दौरान लोकपाल की मांग के सहारे और नई राजनीति शुरू करने के दावे के बीच भारतीय राजनीति में नवाचार करने उतरे समर्पित और बुद्धिजीवी लोगों का जनसमूह देखते देखते तैयार हो गया उनके मन में देश के लिए कुछ सकारात्मक करने के प्रति निःस्वार्थ भाव झलक रहा था । यह नवाचार करने वाले समूह में धीरे धीरे मुद्दों पर असहमति बढ़ने के साथ ही विचार धारा के स्तर पर भी मनमुटाव होने लगा और एक पक्ष राजनीति की ओर झुकने लगा धीरे धीरे एक नई पार्टी की नींव डाली गई जिसका नाम आम आदमी पार्टी रखा गया । जिसके संयोजक की जिम्मेवारी भारतीय राजस्व सेवा से स्वैक्षिक सेवानिवृति ले चुके अरविंद केजरीवाल के हाथ में थी । कहा जाता है राजनिति में जब स्वार्थ होता है तो बहुत कुछ दाव पर लगाने होते हैं, रिस्क लिया जाता है लेकिन इस दौरान नैतिकता का क्षरण भी होता जाता है । ऐसा ही कुछ आम आदमी पार्टी के साथ भी हुआ जितनी तेजी से उनके प्रति लोगों का जनसैलाब उमड़ा था धीरे धीरे राजनीति में प्रवेश के साथ लोगों ने राजनितिक पार्टी के रुप में मान्यता दी और जब सरकार बनी तो मंत्रालयों और सत्ता सुख के लिए खींचतान चली जो स्वाभाविक भी है लेकिन इस खींचतान में एक बड़ा वर्ग जिसमे इनके कई संस्थापक सदस्य भी थे आम आदमी पार्टी से उनके कार्यशैली और कथनी करनी में दिखते फर्क के कारण किनारा होते गए। आम आदमी पार्टी शुचिता और नैतिकता के नाम पर अपने को ईमानदार और सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श वाक्य मानती थी। घोषणाओं के प्रवाह में बहुत कुछ बोल दिया गया जैसे हमारे विधायक/सांसद आधी सैलरी पर काम करेगे, न सिक्योरिटी लेंगे, न कोई बड़ी गाड़ी बांग्ला लेंगे, मेट्रो से आयेंगे आदि जो समय के हिसाब से व्यवहारिक भी नहीं लग रहे थे हुआ भी ऐसा ही जो आम तौर राजनिति में आने के बाद होता है आम आदमी पार्टी के नेताओं पर सत्ता सुख का भूत सवार हुआ और सरकार पर दवाब बनाने लगे थक हार कर पहले से बगावत झेल रही पार्टी में टूट का डर सता रही थी इस दौरान नई नवेली आम आदमी पार्टी के लिए राजनीति में बिल्कुल सबकुछ नया था इसलिए पार्टी टूटे न इसलिए अपने पुराने नैतिकता और शुचिता के मानदंड को ताक पर रखकर स्वार्थ और सत्ता सुख के लिए समझौते करने लगे । यह आम आदमी पार्टी अपने विधायकों की सैलरी एकमुश्त 300%बढ़ाई थीं जो अब तक की लगभग सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी थी और देश के लगभग 1/2राज्यों को छोड़ दे तो उस समय सबसे ज्यादा सैलरी और भत्ते मिलाकर केन्द्र शासित प्रदेश होने के बाबजूद दिल्ली के विधायको की ही थी और लगभग सांसदों की भी बराबरी कर ली थीं ऐसा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं ।कुछ समय बाद अपनी पार्टी के सत्ता में होने के बाद अपनें लोगों को खुश करने और बगावत को शांत करने के लिए संसदीय सचिव में अपने पार्टी के विधायकों को ही रखने लगे और उन विधायको को गाड़ी बंगले सहित अन्य संसदीय सचिव के समांतर सुविधाएं मिलने लगी । इस दौरान कई विवाद खड़े हुए लाभ के पद के कारण 21 बिधायको की मान्यता रद्द होने की कगार पर आ चुकी थीं फिर जैसे तैसे मामले का पटाक्षेप हुआ लेकिन अपनी पार्टी की फजीहत भी बहुत कराई । इसके बाद एक और कुछ छोटे मोटे योजनाओं और सरकारी गतिविधियो में अपने कार्यकर्ताओं को शामिल करने का दौर शुरू हुआ जैसे ओड इवन के दौरान रेड लाइट पर कार्यकर्ताओं की तैनाती, सिविल डिफेंस वालंटियर में प्राथमिकता, मोहल्ला क्लिनिक में अपने कार्यकर्ताओं की नियुक्ति आदि में अपने कार्यकर्ताओं की एंट्री होने से उनके ऊपर पार्टी का दबाव नहीं था जिससे वो अनियंत्रित व्यवहार करने लगे थे यह मामला कुछ वैसा ही है जैसे बंगाल की ममता सरकार में सिंडिकेट राज के जगजाहिर आरोप लगते रहे हैं। समय के साथ पार्टी के विस्तार के लिए नैतिक मापदंडों को ताक पर रखते हुए अनैतिक,अराजक और कट्टरपंथी, विदेशी ताकतों से पैसा चंदा के रुप में लेने से तनिक भी गुरेज नहीं किया । यह वही आम आदमी पार्टी है जो एक समय चंदे का व्यौरा अपने वेबसाइट पर डालने की घोषणा की थी कुछ समय तक तो यह सिलसिला चला था जब पार्टी शुरुआती दौर में थी और चंदे की राशि कम थी । धीरे धीरे पार्टी के विस्तार और नेताओं की अति महत्वाकांक्षाओं ने अपने सिद्धांतो से समझौते करने को मजबूर किया और चंदे की राशि जब अन्य अनैतिक कृत्यों/देश विरोधी संगठनों से बड़ी मात्रा में आने लगी तो वेबसाइट पर दिखाने से सारा भेद खुल जानें के डर और फजीहत होने से बचने के लिए चंदे की सारी डिटेल्स वेबसाइट से हटा ली गई ।इस कारण दिल्ली बीजेपी के वर्तमान उपाध्यक्ष कपिल मिश्रा ने आम आदमी पार्टी की कड़ी आलोचना की और पारदर्शिता की दुहाई देने वाली आम आदमी पार्टी की पोल खोल दी और पार्टी से इस्तीफा दे दिया ।इस तरह नैतिकता की सीमा लांघते लांघते कब आम आदमी से खास आदमी होती गई पता ही नही चला । धीरे धीरे अनैतिक कार्यों में लिप्त होने और भ्रष्टाचार के रास्ते से काली कमाई के संकेत और आरोप लगने लगे ऐसा होना राजनिति में कोई नई बात नहीं है उसके बाद जांच एजेंसियों, प्रशासन की नजर पड़ी और उनकी दबिश बढ़ती गई । इस तरह अपने को आम आदमी की तरह चलने जैसी कहने बाली पार्टी अन्य राजनितिक पार्टियों की श्रेणी में आ गई और इनके नेताओं का भी जांच एजेंसियों, अदालतों और जेल आने जानें का सिलसिला शुरू हो गया । इस पार्टी के इतनी तेजी से ग्राफ बढ़ने का एक मुख्य कारण जनता को फ्री के लोकलुभावन वादे कर उनपर शुरुआती कुछ महीनों के लिए चलाकर जनता का विश्वास जीतकर लगातार सत्ता में आने की हैट्रिक पूरी की इसी दौरान धीरे धीरे अन्य राज्यों में पार्टी का नाम और प्रचार बढ़ता गया और देखते ही देखते पंजाब में भी कांग्रेस से सत्ता अकेले दम पर हथिया ली जनभावना और आशाओं और आकांक्षाओं के बीच पार्टी अन्य राज्यों में आंदोलन, अपनी योजनाओं और विज्ञापन के द्वारा एक मॉडल पेश करने की कोशिश शुरू की गई कार्यकताओं और सदस्यता अभियान तेजी से चलने लगा और गुजरात, गोवा, उत्तराखण्ड में भी पार्टी को इतना समर्थन मिल गया कि अब वो अपने को मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दलों की कतार में ला सकें समय के साथ चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता दे दिया ।राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता भारत में इतने कम समय में शायद ही किसी पार्टी को मिली होगी इसलिए भी आम आदमी पार्टी के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी । इस तरह लोगों को लगने लगा कि यह पार्टी कांग्रेस बीजेपी जैसी बड़ी और मजबूत संगठनों को भी चुनौती दे सकती हैं।लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था ।आम आदमी पार्टी के आत्मविश्वास का पैमाना इतना बढ़ गया कि आम आदमी पार्टी हाई कोर्ट के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आवंटित जमीन पर कब्जा कर अपने पार्टी का ऑफिस बना दिया था । जब कोर्ट में फजीहत हुई तो राष्ट्रीय पार्टी के लिए एक कार्यालय और चुनाव की दुहाई देते हुए कुछ समय तक ऑफिस के संचालन की छूट प्राप्त कर लिया ।हद तो तब हो गई जब जेल मंत्री सत्येन्द्र जैन जेल में मसाज कराते पाए गए जेल में वीआईपी सुविधाओ पर सवाल उठने लगे तो गिरती स्वास्थ्य के आधार पर सशर्त अंतरिम जमानत अर्जी दाखिल होने लगी और अस्थाई तौर पर अंतरिम बेल मिल गई ।इसके बाद इनके कई वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों पर शराब नीति मामले में बार बार बदलाव के बाद राज्यपाल द्वारा जांच की घोषणा की गई इसके बाद जांच एजेंसियों द्वारा गाज गिरने लगी उनमें मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, दुर्गेश पाठक, अमानुल्लाह खां आदि प्रमुख हैं । इन नेताओं के लंबे समय तक जेल में मंत्री बने रहने के कारण बिधायी और विभागीय कार्य में भी बाधा उत्पन्न हो रही है फिर भी कोई मंत्री इस्तीफा देने को तैयार नहीं। भ्रष्टाचार और मनी लांड्रिंग पर नित नए खुलासे के कारण शक बढ़ता जा रहा जिस कारण इनको न्यायालय से भी कोई राहत नहीं मिल पा रही ।लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं और जांच को प्रभावित करने और मामले में दम होने के कारण लम्बे समय से जेल में बंद सत्येंद्र जैन से इस्तीफा लेने का निर्देश के बाद इस्तीफा लिया गया तब तक तो जो फजीहत होनी थी वी हो गई ।अभी भी मनीष सिसोदिया उपमुख्यमंत्री हैं गिरफ्तारी के समय तक लगभग 15–18 विभाग उनके पास थे।लेकिन अभी भी इस्तीफा नहीं लिया गया है।भले उनके कुछ मंत्रालय अन्य मंत्रियों को दे दिए गए हो लेकिन बिधायी और उसके उचित क्रियान्वयन में समस्या जरूर आती है और समस्या आना और उसका दिखना भी शुरू हो गया है वो चाहे शिक्षा विभाग की अनियमितता, मोहल्ला क्लिनिक, जल बोर्ड की समस्या से जनता को पानी , स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे बुनियादी सुविधाएं और ढांचे में विसंगतियों के कारण जांच की आंच अन्य विभागों पर भी गिरने लगी है इनके कई नेता चुनाव के समय जांच के डर से विदेशों में अपने और संबंधियों के इलाज का हवाला देकर रणक्षेत्र से गायब हो गए हैं। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन को आय से अधिक मामले में सीबीआई के द्वारा दर्ज मामले और ईडी के द्वारा मनी लांड्रिंग मामले में मई 2022 में गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में भेजा गया था l उनके खराब स्वास्थ्य के कारण अंतरिम ज़मानत दी गई जिसे कई बार बढ़ाए भी गए । अब दुबारा से सत्येन्द जैन नियमित जमानत की मांग सुप्रीम कोर्ट से की लेकिन कोर्ट ने किसी भी बहाना को नहीं माना और ज़मानत याचिका खारिज करते हुए तुरंत सरेंडर करने को कहा । यह फैसला आम आदमी पार्टी के लिए आईना दिखाने जैसा है।

हालांकि केजरीवाल एक समय सत्येंद्र जैन को देशभक्त और आरोपों को झूठा बताकर क्लीन चिट देते रहे थे लेकिन न्यायालय के सामने कोई ऐसा सबूत नहीं पेश कर सके जिससे उनको जमानत देने का पर्याप्त कारण बने । न्यायालय को ईडी के दस्तावेजों में मनी लांड्रिंग से जुड़े मामले के तार मिल रहे हैं इसलिए नियमित ज़मानत देने से इंकार कर तुरंत तिहाड़ जेल में सरेंडर होने का आदेश भी दिया । सत्येंद्र जैन के साथ ही उनके करीबी वैभव जैन और अंकुश जैन की भी याचिका खारिज कर दी है । अब आम आदमी पार्टी पर ये नैतिक दवाब होगा कि वो सत्येन्द्र जैन को कब तक बिना सबूत के क्लीन चिट देकर बचाव करते रहेंगे वो भी तब जब न्यायालय नियमित ज़मानत देने से इंकार कर रहा हो । केजरीवाल का मामला कोई नया या अजूबा नहीं है इससे पहले भी देश में अनेकों नेताओं को ईडी, सीबीआई,आईटी की रेड, नोटिस,चिठ्ठी या समन न मिले हों सभी ने उनका सम्मान करते हुए उन संवैधानिक व्यवस्था या संस्थाओं में आस्था जताते हुए हाजिर होकर संवैधानिक तरीके से अपनी बात रखी और कई बार उनकी बातों में विश्वास की कमी के कारण गिरफ्तारियां भी हुई है । विधि सम्मत और तर्क संगत बाते होने पर उनको क्लीन चिट या गिरफ्तारी से अंतरिम छूट भी मिली । केजरीवाल उन संवैधानिक संस्थाओं के आदेशों की अवमानना कर सत्ता से चिपके रहने की एक अदभुत मिशाल कायम की । कई बार तथ्यों के बिना भी केजरीवाल अपने को पीड़ित साबित करके भी भोली भाली जनता को गुमराह करने से बाज नहीं आ रहे । जब उन्हें अपने ऊपर लगे तथाकथित या प्रथम दृष्टया जो आरोप लगाया गया है उस पर अपनी बात स्पष्टता और साफगोई से जनता और संवैधानिक व्यवस्था के तहत जांच एजेंसी / न्यायालय पर दोषारोपण के बजाय जांच में सहयोग करते हुए सबूत, तथ्य और तर्क पेश करना चाहिए । एसीएमएम ने केजरीवाल के मामले में कहा था कि कानूनी तौर पर आरोपी ईडी के समन पर व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए बाध्य था, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा। बार बार बहाने बनाने से उनकी विश्वसनीयता और न्यायालय और जांच एजेंसियों के प्रति असम्मान का भाव भी झलकता है ।

जो केजरीवाल अन्ना हजारे के आंदोलन का इस्तेमाल करते हुए लोकपाल की बात कहकर सत्ता में आए आज वो नैतिकता के निम्न स्तर पर पहुंच गए केजरीवाल एक समय राम मंदिर की जगह अस्पताल,विश्विद्यालय की मांग कर रहे थे और अपनी नानी जी के तथाकथित किस्से भी सुनाकर करोड़ों सनातनी धर्मावलंबियों का मजाक उड़ाते थे । वहीं आजकल राम मंदिर के दर्शन कर रहे हैं, सुंदर कांड का पाठ कर रहे हैं और जनता को भी राम मंदिर के दर्शन कराने की बात करने लगे हैं । शराब घोटाले में बंद मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, सत्येंद्र जैन की जमानत अर्जी बार बार खारिज हो रही है । इसका मतलब प्रथम दृष्टया मामला संगीन न भी हो तब भी जमानत के योग्य अभी न्यायालय ने नहीं माना है न्यायालय को केजरीवाल के बार बार अपनी बातों से पलट जानें के कारण संदेह है कि उनके प्रभावशाली मंत्रियों या नेताओं के जेल से बाहर आने पर अपने प्रभाव से जांच और गवाह को प्रभावित कर सकते हैं । ऐसे बहुत से परस्पर विरोधाभाषी मामले हैं जिससे केजरीवाल की कथनी और करनी में फर्क साफ झलक रहा है । जो केजरीवाल एक समय कहा करते थे कि किसी के ऊपर आरोप लग जाए तो उसको इस्तीफा देकर जांच एजेंसी और न्यायालय का सामना करना चाहिए । वही केजरीवाल आजकल अपने उस वक्तव्य को झुठला रहे हैं और तमाम जांच एजेंसी और न्यायालय के नोटिस या समन से बचने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाते नजर आएं । हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह की याचिका खारिज कर दी, जिसमें प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता के बारे में उनकी टिप्पणियों से संबंधित आपराधिक मानहानि मामले में दोनों नेताओं के खिलाफ जारी समन को रद्द करने का अनुरोध किया गया था. केजरीवाल की भाषा से ऐसा लगता है कि इससे गुजरात के विश्वविद्यालय और उस संस्थान से पढ़ाई करने वाले लाखों छात्रों का भी अपमान कर रहे हैं या उन संस्थानों की कार्य प्रणाली पर प्रश्र चिह्न उठा रहे जिस यूनिवर्सिटी ने उनकी डिग्री को वेबसाइट पर अपलोड किया हुआ है जिसे कोई भी देख सकता है l ये अलग बात है कि केजरीवाल की पार्टी से संबंध रखने वाले पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर को फर्जी डिग्री के कारण उनके निर्वाचन को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया । जिसे केजरीवाल ने उनकी फर्जी डिग्री को जांच कर सत्यापित किया था पता नहीं उनके पास ऐसी बिलक्षण प्रतिभा कहां से आई जो माननीय न्यायाधीशों को भी प्राप्त नही हुई और उनकी डिग्री मामले में उनके निर्वाचन को रद्द किया था । केजरीवाल की पार्टी जब नई नवेली आई थी तो आम जनमानस में एक नई उम्मीद थी कि राजनीति में एक नए आयाम के साथ नैतिकता, शुचिता के साथ पारदर्शी तरीके से सरकार चलाकर समाज में राजनीति के अनुभव को लेकर जो एक नकारात्मक आमधारणा बनी हुई है उसकी जगह एक अच्छा और सकारात्मक संदेश देंगें । उनकी पार्टी के कई नेता शराब घोटाला, मनी लांड्रिंग, फर्जी डिग्री, राशनकार्ड में धांधली, वक्फ बोर्ड और बिल्डरों से रिश्वत जैसे मामले में जेल में सजा काट रहे । सार्वजनिक जीवन या पदों पर रहने के बाद उस व्यक्ति की जिम्मेवारी बढ़ जाती है जिसकी पार्टी में खुद फर्जी डिग्री वाले मंत्री हों वो जब पीएम की डिग्री की मांग एक बार नहीं बार बार मांगने की हठ करने लगे l इस मामले में सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से फटकार लगाने के बाबजूद पुनर्विचार याचिका दायर करने और समन को ख़ारिज करने के लिए बार बार याचिका दायर करना कहीं न कहीं न्यायिक प्रक्रिया का मजाक उड़ाना प्रतीत होता है । एक चुने हुए मुख्यमंत्री का इस तरह का व्यवहार उनकी हठधर्मिता और अपने को सबसे ज्यादा काबिल और सर्वज्ञ मान लेने जैसे अहंकारी भाव को भी दर्शाता है । शीश महल के निर्माण प्रक्रिया में भी धांधली और भ्रष्टाचार की चर्चा आम लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है । लाखो के पर्दे, लाखों के कमोड, रिमोट से खुलने वाले कमरे और खिड़कियां और विदेशों से टाइल्स/मार्बल से सौंदर्यीकरण में धन की अनावश्यक बर्बादी कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी के असली चरित्र को उजागर भी करता है । यह सारी सुविधाएं देश के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति जी के आवास में भी नहीं है । यह केजरीवाल के आम आदमी की जगह राजा महाराजा वाली सोच को दर्शाता है । गुजरात कोर्ट से भी समन आए लगभग 6 महीने से ज्यादा हो गए लेकिन पेश होने की बजाय हठधर्मिता दिखाते हुए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट गए जहां उसको फटकार लगाई और पेश होने का आदेश दिया है अब देखना है कि केजरीवाल अपने को संवैधानिक संस्थाओं से ऊपर मानते हैं या उनका सम्मान करेंगे यह भविष्य में पता चल जायेगा । केजरीवाल और उनकी सरकार के मंत्री ने विधायकों की खरीद फरोख्त के लिए बीजेपी पर आरोप लगाए लेकिन जब इसके सबूत की मांग और उनके आरोपों पर कारवाई के लिए पुलिस प्रशासन नोटिस लेकर सबूत पेश करने की बात की तो नोटिस लेने से ही बचने के लिए ऑफिस और बंगले से भागते नजर आए l ऐसे भी हालात हुए कि ऑफिस में मौजूद होने के बाबजूद खुद नोटिस नहीं लिए । आखिर खुद केजरीवाल नोटिस लेने से इसलिए बचते रहे हैं ताकि कोर्ट, जांच एजेंसियों या प्रशासन से बचने के लिए अधिक समय लेने के लिए बहाने बना सकें कि नोटिस तो मेरे पास अभी आया नही है ऑफिस में पड़ा होंगा कहकर पल्ला झाड़ लेने की मंशा साफ झलकती है ।

अरविंद केजरीवाल इकलौता मुख्य्मंत्री हैं जिसने अपने पास एक भी मंत्रालय या विभाग नहीं रखे हैं जिसके लिए उन्हें सीधे सीधे जिम्मेदार ठहराया जा सके । एक भी विभाग नहीं रखने के कारण उनको किसी मंत्रालय के बिल या दस्तावेज पर हस्ताक्षर भी नहीं करने होते हैं और किसी धांधली या भ्रटाचार के मामले में ज्यादा चिंता भी नहीं रहती है l उनके मंत्री को जेल में भी मसाज, मनोरंजन के लिए टीवी और अन्य विशेष सुविधाएं मिली हुई थी ऐसी विचित्र बात तब हो रही थीं जब जेल विभाग और उनके मंत्री खुद सत्येंद्र जैन थे और अपने पद का गलत फ़ायदा उठाते हुए 5–5 कैदी को अपनी सेवा में लगा रहे थे इसकी वीडियो लीक होने के बाद ये मामला जब तूल पकड़ा तो जेल प्रशासन सतर्क हुआ और उनकी विशेष वीआईपी सेवाओं को सीमित किया गया  । समय के साथ जांच की आंच दिल्ली के सीएम सह आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल तक पहुंची तो ईडी ने उनको समन भेजकर पूछताछ और जांच में सहयोग करने के लिए बुलावा भेजा गया तो उनके समन को बार बार असंवैधानिक कहकर जवाब देने से बचने के लिए तरह तरह के बहाने बनाए जानें लगे। एक संबैधानिक पद पर आसीन और 80% एमएलए होने के बाबजूद यदि बिना किसी विपक्ष की मांग के विधानसभा में कोई मुख्यमंत्री विश्वास प्रस्ताव लाता है तो इसका सीधा मतलब होता है ईडी की गिरफ्तारी और समन से बचने के लिए सत्र का समय जाया करना जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी । दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश में बजट सत्र में बजट के अध्ययन के नाम पर 15 दिन से ज्यादा समय बड़ी चतुराई से निकाल देती है और तब तक बजट नहीं पास करती जब तक कि महामहिम एलजी वी के सक्सेना साहब बजट सत्र में देरी होने के लिए स्पष्टीकरण न मांग ले । हाल ही में ईडी के लगातार समन का निरादर करने के बाद अंततःन्यायालय के हस्तक्षेप के बाद झारखंड के मुख्य्मंत्री को भी इस्तीफा देकर ईडी के सामने हाजिर होना पड़ा। बंगाल के टीएमसी नेता शेख शाहजहां को भी सीबीआई के सामने उपस्थित होना पड़ा । तीन चौथाई से भी ज्यादा बहुमत के साथ जो मुख्य्मंत्री चुनकर आता है यदि वो संवैधानिक संस्थाओं या उनके बुलावे पर अपनी सफाई और स्पष्टीकरण देने से भागता है या बचने के लिए बहाने बनाता है मोबाइल के पासवर्ड भूलने और याददाश्त खोने का नाटक करता है तो फिर जनता को वो मुख्य्मंत्री किस मुंह से संवैधानिक संस्थाओं के आदेश के अनुपालन के लिएआह्वान, प्रोत्साहित या जागरूक कर पायेगा। फिर जनता केजरीवाल को अपना आदर्श क्यों मानेगी।केजरीवाल के हाव भाव और उसके चाल चलन से अब ये भरोसा करना मुश्किल है कि ये वही केजरीवाल तो नहीं हैं जो कभी लोकपाल से लेकर बात बात में अपने बच्चों की कसम तक खाते थे और सादगी की मिसाल तो ऐसे देते थे कि लोग उनको मसीहा के रुप में देखने लगे थे लेकिन बदले हालात में आज शीशमहल से लेकर लग्जरी वाहन, महंगे मोबाइल और शानो शौकत में कोई कमी नहीं । शीश महल के रिनोवेशन के लिए 10 करोड़ से कम टेंडर के लिए तकनीकी और विशेषज्ञ समिति की स्वीकृति और केंद्र के सीपीडब्ल्यूडी के वित्त विभाग की मंजूरी की जरूरत नहीं होती इसीलिए केजरीवाल ने पांच टेंडर 9 करोड़ 99 लाख के निकाले। एकाध टेंडर में यह डाटा होता तो समझ में आता है लेकिन एक साथ 5–5 टेंडर के खर्चे की सीमा बिल्कुल अधिकतम सीमा एक जैसे होना भी किसी सोची समझी साजिश के तहत भ्रष्टाचार करने और अन्य समितियों से अप्रूवल से बचने के लिए अनोखा तरीका भी अपनाया गया । धीरे धीरे आम आदमी पार्टी की कथनी और करनी के भेद जनता के बीच सार्वजानिक होते जा रहे हैं यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है इसके बाद तो जनता फिर अपने को ठगा महसूस करने लगी। आम आदमी पार्टी जिसे जनता ने एक अलग पहचान और उम्मीद से एक नई राजनीति करने के लिए चुना है उनकी उम्मीदों को इस तरह न तोड़े जिससे नई आनेवाली पार्टियों के लिए भी एक चुनौती साबित हो और आम आदमी पार्टी को इसके लिए उदहारण के तौर पर इस्तेमाल किया जाए ।

ईडी ने एक के बाद एक कुल नौ समन भेजा इस दौरान ईडी न्यायालय का भी रुख किया इसके बाद न्यायालय से हरी झंडी मिलने के साथ ही ईडी की टीम दसवें समन के साथ सर्च वारंट लेकर आई और दो घंटे की लंबी पूछताछ के बाद अनततः गिरफ्तार कर ही लिया।

फिलहाल केजरीवाल डेढ़ महीनों से और उनके कई वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन लम्बे समय से नयायिक हिरासत में हैं और कई बार ज़मानत और ईडी की गिरफ्तारी को अवैध ठहराने वाली याचिका खारिज हो चुकी है यह देश के इकलौते सीएम है जिसने अपने पद पर रहते हुए गिरफ्तारी दी है । हालांकि कुछ दिन पहले ही झारखंड के सीएम ने गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे दिया था , इससे पूर्व में भी बिहार के सीएम लालू प्रसाद और तमिलनाडू के सीएम जयललिता ने भी इस्तीफा देकर अपनी गिरफ्तारी दी थी । केजरीवाल कम से कम उन नेताओं की नैतिकताओं और मर्यादाओं को ताक पर रखकर सत्ता सुख के लिए सभी सीमाएं लांघ जायेंगे इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी । परिवारवाद पर करारा प्रहार करने वाले केजरीवाल इंडीगठबन्धन के उन्हीं परिवारवादी नेताओं के साथ हाथ मिलाए उसके बाद फिर अपनी पत्नी को अपनी कुर्सी से अपने संदेश को पढ़वाने का नाटक कर रहे। उनकी पत्नी और उनके मंत्री भी बिना किसी पेन, पेपर, प्रिंटर,कंप्यूटर के टाइप किया हुआ चिट्ठी बता कर मीडिया के सामने झूठे संदेश पढ़ रहे यदि वास्तव में केजरीवाल को दिल्ली की इतनी चिंता होती तो इस्तीफा देकर किसी भी आम कार्यकर्ता को सीएम बनाकर एक नया कीर्तिमान बना सकते थे यह अवसर भी उन्होंने गवाया ।वर्तमान में जल, शिक्षा और स्वास्थ्य की हालत इतनी खराब है कि उसमें भी भ्रष्टाचार की जांच चल रही है ।शिक्षा की हालत तो इतनी खराब है कि हजारों की क्षमता वाले स्कूल में टीन के शेड लगे हैं कुछ स्कूल तो ऐसे पाए गए हैं जहां एक रूम में दो अलग अलग विषयों की पढाई हो रही है ऐसी हालत के लिए न्यायालय ने भी दिल्ली सरकार और उसके सचिव को फटकार लगाई है । केजरीवाल विज्ञापन के नशे में ये भी भूल गए मेरठ दिल्ली रैपिड मेट्रो में मास रैपिड ट्रांजीशन सिस्टम में उनको भी फंडिंग करना है जिस प्रकार केन्द्र और यूपी सरकार कर रही है तब कोर्ट ने विज्ञापन के पैसे से फंडिंग करने का सख्त आदेश दिया तब जाकर केजरीवाल सरकार हरकत में आई थीं ।अब आम आदमी पार्टी के सामने दो विकल्प नजर आ रहे हैं अभी भी केजरीवाल इस्तीफा देकर किसी नए नेता को सीएम बनाकर दिल्ली की जनता के विकास पर फोकस करे। जेल से सरकार चलाना उतना भी व्यावहारिक नहीं है जितना की दंभ भरा जा रहा। सरकारे लोकलाज और नैतिकता से भी चलती है जिस दिन जनता को ये समझ आ गया कि सत्ता मद में ये सारी मर्यादा लांघ देंगे तो फिर पार्टी को सबक भी सिखाया जा सकता ये भली भांति केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को सोचना होगा । ऐसे बहुत से विषय पर कनून मौन है या लूप होल है इसका ये मतलब नहीं कि आप विधायिका को सोचने पर मजबूर करे कि इस गंभीर विषय पर कनून बनाए भविष्य में ऐसी संभावना बनी हुई है कि ऐसी स्थिति में कानून को व्यापक बनाने होंगे ताकि केजरीवाल जैसे सत्ता लोलुप चालाक नेता उस लूप होल का फ़ायदा न उठा सकें।कल को उनका उदहारण लेकर अन्य सीएम और अपराधी भी अपना बचाव करने लगेंगे तो सोचिए ये केजरीवाल द्वारा बनाई नई परिपाटी राजनीति में जो थोड़ी बहुत भी नैतिकता बची है उसका क्या होगा ।दूसरा विकल्प यदि संवैधानिक तंत्र पंगु होने लगेगा तो एलजी साहब राष्ट्रपति शासन लगाने की गुहार लगा सकते हैं । आम आदमी पार्टी अपने नेताओं के कर्मों और अतिमहत्वाकांक्षा की वजह से भ्रष्टाचार रूपी दलदल में फसती जा रही है । न्यायालय में अब शराब नीति से जुड़े आपराधिक और हवाला कारोबार से सूत्र जुड़ने के सबूत मिल गए तो फिर आम आदमी पार्टी जो एक कंपनी के तौर पर रजिस्टर्ड है उसकी मान्यता पर भी संकट के बादल मंडरा सकते हैं यह भविष्य के गर्भ में छुपा है कि आगे आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक की राह कितनी मुश्किल या आसान होंगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *